परदेस देस की ओर चला
हर नगर गांव की ओर चला
मन मे ले चिंता जीवन की
मजदूर ये घर की ओर चला ।
कभी सत्ता ने सामंतों ने
कभी नगर सेठ के फंदों ने
इसको रोटी के लालच ने
सदियों से है रोज़ छला ।
सर पे ग्रहस्थी का बोझ रखा
जाने का साधन खोज रहा
दुनिया की #तालाबंदी में
कदमों का ताला खोल चला ।
गर मिलना ही है मिट्टी में तो
अपनी मिट्टी की ओर चला
मन मे चिंता ले जीवन की
मजदूर ये घर की ओर चला ।